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प्रिय साथियो,
एक सफल और सार्थक जीवन के लिये जितना ज़रूरी खुद पर भरोसा करना है, उतना ही ज़रूरी अहंकार और आत्मप्रशंसा से मुक्त रहना भी है। अक्सर ही हम इस बारीक सीमा का अतिक्रमण कर जाते हैं और हमारा व्यक्तित्व आत्मकेंद्रित हो जाता है। इसी प्रवृत्ति को मनोविज्ञान की भाषा में 'Narcissism' या 'आत्म-मुग्धता' कहा जाता है।
आत्म-मुग्धता क्या है, यह आत्मविश्वास से कैसे अलग है, यह कैसे हमारे व्यक्तित्व और समाज को नुकसान पहुँचाती है, इसके क्या लक्षण हैं और इस मानसिकता से कैसे पार पाया जा सकता है - इन तमाम पहलुओं पर यह परिचर्चा केंद्रित है। साथ ही यूनानी मिथक 'नार्सिसस' से निकले इस शब्द की रोचक उत्पत्ति से भी आप परिचित हो सकेंगे और इस बात से भी कि कैसे महाभारत में श्रीकृष्ण ने इस प्रवृत्ति से बचने की सलाह दी थी! उम्मीद है कि संयमी और संतुलित व्यक्तित्व निर्माण में यह चर्चा सहायक हो सकेगी।
Dear friends,
For a successful and meaningful life, as much as it is important to believe in yourself, it is equally important to be free from ego and self-praise. Very often we cross this fine line and our personality becomes self-centered. This tendency is called Narcissism or Self-obsession in the language of psychology.
What is self-obsession, how it is different from self-confidence, how it harms our personality and society, what are its symptoms and how to overcome this mindset - all these aspects are the focus of this discussion. Along with this, you will also be able to get acquainted with the interesting origin of this word derived from the Greek myth 'Narcissus' and how Shri Krishna advised to avoid this tendency in the Mahabharata!
It is expected that this discussion will be helpful in building a restrained and balanced personality.
#vikasdivyakirtisir #selfconfidence #narcissism