नहीं रहे उस्ताद राशिद ख़ान। राशिद ख़ाँ का हिंदुस्तानी संगीत में क्या स्थान और रूतबा है, इसकी ठीक-ठीक व्याख्या मैं नहीं कर सकता लेकिन उनके जाने से लाखों सुनने वालों में जो ख़ालीपन आया है, उसे महसूस कर रहा हूं। वे कई दिनों से अस्पताल में थे, लेकिन उनके जाने के बाद ही सबको ध्यान आया। वजह यह है कि हिन्दी पत्रकारिता में ऐसे फनकारों के लिए जगह बहुत कम है, उनका इस्तेमाल बहुत है। उनके संगीत का ख़ूब इस्तेमाल होता है मगर इतने बड़े फ़नकार का जाना उनके लिए छोटी खबर बन जाती है। यह शिकायत कोई नई नहीं है, बस बताने के लिए बताया कि हिन्दी पत्रकारिता को किसी बात से फर्क नहीं पड़ता है। मगर इस पर बात होनी चाहिए कि मीडिया और राजनीति का जगत इस तरह की दुखद खबरों से भी कैसे इतना अछूता रह जाता है।
वे सुनने वालों को तमाम दुखों से उबार लेते हैं, मगर जब वही राशिद ख़ान इस दुनिया को छोड़ फिर से वीरानी पैदा कर जाते हैं तो इस दुख के साथ किसका इंतज़ार किया जाएगा…उनके जाने के बाद अब कौन आएगा….अलविदा ….
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/ @ravishkumar.official
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